इन्हें तू क्यों न बेफिक्र हो बता रही रे
दिल में न छुपे कोई राज़ हो ,बोल तेरे बेबाक हो
क्यों तू अपनी उड़ानों को ,यूँ बांध रही रे
क्यों तू अपनी हसरतों को यूँ मिटाये रे
तेरा ये दर्द मुझको अब न भये रे
तेरी ये बेपरवाही मुझको सताए रे
क्यों त अपने ज़ज़्बातों को यूँ मिटाये रे
सूरत -ए- हाल क्यों न तू सबको समझाए रे
अपने दर्द का सितम क्यों न तू दिखाये रे
क्यों बेपरवाही के दरवाज़े पे मुझ तेरी दस्तक दिखिए दे
क्यों न तू खुद को खुद से आज़ादी दे पाए रे
जंज़ीरों में कब तक तू अपनी आज़ादी बांध रही रे
खुद से हो आज़ाद तू ,लफ़्ज़ों को कर बेपरवाह तू
तेरी है ये ज़िन्दगी,फ़िक्र को भूल
बेफिक्र होकर ,जिए जा रे.
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