जज्बात लबो तक न आ पाए , इसी बात कि कसक रह गयी
शाम कल भी तन्हा थी ,आज कि शाम हमे खुद से तन्हा कर गई।
हम रोये ऐसे कि आँशु कि एक बूंद तक न निकली
दिल में दर्द ऐसा उठा की रोने की एक आह न निकली।
हम रोये ऐसे कि आँशु कि एक बूंद तक न निकली
दिल टूटा जब तो इसके रोने की आवाज़ तक न निकली
हम वक़्त से टकरा गए ये सोच की कल बदल जायेगा
हमे क्या पता था ये ज़ालिम हमे ही बदल जायेगा।
किस बात का गम है की तुम न हो मेरे पास
तुम्हारे रहने से भी हमने आँशु बहुत बहाये थे।
किस बात का गम करे की तुम न हो मेरे पास
भीड़ में भी हम तन्हा न थे ,आज उसी भीड़ ने हमे तन्हा कर दिया।
कि ज़ज़्बातों का दौर कुछ यूँ चला कि शायरों ने
अल्फ़ाज़ों कि हसीं बरसात कर दी
हमारे ज़ज़्बातों ने ही हमें उस बरसात से भी अनछुआ कर दिया।
कई मीरजों ने जान गवाये अपने प्यार में विश्वास कर
हम तो आँख मूँद आग को बढ़ते जा रहे थे।
विवश किया गया हमें भरी महफ़िल में रंग ज़माने को
कैसे कहता मैं उन्हें आज आया मैं उन महफिलों के ग़म भुलाने को।
दोस्तों ने न मज़हब देखा न इमान देखा ,
हर सच्चे दिल में एक सच्चा इंसान देखा
यूँ तो खुदगर्ज़ है वो लोग जिन्होंने इस पाक रिस्ते में भी नफा - नुकसान देखा।
लबो तक न आने पाए ऐसे ज़ज़्बातों का क्या
हमने उम्र गवा दी जज्बातों को संभाले रखे।
आजकल प्यार के मायने बदल दिये जा रहे हैं
हीर -राँझा,सोनी -महिवाल कि जगह खोखले रिश्तों के कसम खाये जा रहे है
प्यार कि परिभासा जा उनसे पूछे जो हमे बचपन से अबतक
बिन किसी आशा के बेइन्तेहा प्यार किये जा रहे हैं।
खोखली दोस्ती की गहराई हमे बोतलों ने समझाइ
जब बोतल हुऐ खाली तो हमे खुद कि आवाज़ ही गूंजती आई।
किस बात का ऐब करे हम खुद पर
वक़्त ने हसीं सितम कर रखे हैं
कभी हम वक़्त से तो कभी वक़्त हमसे उलझे रहते हैं।
किस बात पर वो रूठ जाते है ,ये हमें समझ नही आता
पर ये उनका रूठना भी हमे मानने को मज़बूर कर जाता है।
क्यों तुम्हे कह दे की हमे तुमसे मुहब्बत हैं
क्या हमारी आँखों कि चमक तुम्हे नज़र नही आती।
यूँ तो आशिक़ कई हुवे मोहब्बत में
खुद को लुटा के दूसरे को खुशी देने कि ये आदत हमे नागवार लगते है।
शाम कल भी तन्हा थी ,आज कि शाम हमे खुद से तन्हा कर गई।
हम रोये ऐसे कि आँशु कि एक बूंद तक न निकली
दिल में दर्द ऐसा उठा की रोने की एक आह न निकली।
हम रोये ऐसे कि आँशु कि एक बूंद तक न निकली
दिल टूटा जब तो इसके रोने की आवाज़ तक न निकली
हम वक़्त से टकरा गए ये सोच की कल बदल जायेगा
हमे क्या पता था ये ज़ालिम हमे ही बदल जायेगा।
किस बात का गम है की तुम न हो मेरे पास
तुम्हारे रहने से भी हमने आँशु बहुत बहाये थे।
किस बात का गम करे की तुम न हो मेरे पास
भीड़ में भी हम तन्हा न थे ,आज उसी भीड़ ने हमे तन्हा कर दिया।
कि ज़ज़्बातों का दौर कुछ यूँ चला कि शायरों ने
अल्फ़ाज़ों कि हसीं बरसात कर दी
हमारे ज़ज़्बातों ने ही हमें उस बरसात से भी अनछुआ कर दिया।
कई मीरजों ने जान गवाये अपने प्यार में विश्वास कर
हम तो आँख मूँद आग को बढ़ते जा रहे थे।
विवश किया गया हमें भरी महफ़िल में रंग ज़माने को
कैसे कहता मैं उन्हें आज आया मैं उन महफिलों के ग़म भुलाने को।
दोस्तों ने न मज़हब देखा न इमान देखा ,
हर सच्चे दिल में एक सच्चा इंसान देखा
यूँ तो खुदगर्ज़ है वो लोग जिन्होंने इस पाक रिस्ते में भी नफा - नुकसान देखा।
लबो तक न आने पाए ऐसे ज़ज़्बातों का क्या
हमने उम्र गवा दी जज्बातों को संभाले रखे।
आजकल प्यार के मायने बदल दिये जा रहे हैं
हीर -राँझा,सोनी -महिवाल कि जगह खोखले रिश्तों के कसम खाये जा रहे है
प्यार कि परिभासा जा उनसे पूछे जो हमे बचपन से अबतक
बिन किसी आशा के बेइन्तेहा प्यार किये जा रहे हैं।
खोखली दोस्ती की गहराई हमे बोतलों ने समझाइ
जब बोतल हुऐ खाली तो हमे खुद कि आवाज़ ही गूंजती आई।
किस बात का ऐब करे हम खुद पर
वक़्त ने हसीं सितम कर रखे हैं
कभी हम वक़्त से तो कभी वक़्त हमसे उलझे रहते हैं।
किस बात पर वो रूठ जाते है ,ये हमें समझ नही आता
पर ये उनका रूठना भी हमे मानने को मज़बूर कर जाता है।
क्यों तुम्हे कह दे की हमे तुमसे मुहब्बत हैं
क्या हमारी आँखों कि चमक तुम्हे नज़र नही आती।
यूँ तो आशिक़ कई हुवे मोहब्बत में
खुद को लुटा के दूसरे को खुशी देने कि ये आदत हमे नागवार लगते है।
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