Sunday, November 15, 2015

आने वाले कल की परिकल्पना

 सोच समझकर  चिंतन  किया मैंने  उजाले  में ,
 क्या  होगी मेरे देश की सूरत आने वाले सालो में ,
  
कल भी तारे यूँ ही होंगे ,चाँद की चमक भी काम न होगी ,
पर क्या होगा  जब इनकी बातें करने वाले न इंसान  होंगे । 

खुशियाँ  भी अपार होंगी आने वाले सालों में ,
पर क्या होगा जब उन्हें बाँटने को हमारे आपने ही न साथ होंगे ,

खुशियां  है तो गम भी  ज़ाहिर हज़ार   होंगे  ,
पर क्या होगा जब गम सिर्फ एक तक सिमट जायेंगे । 

दोस्ती ,भाईचारे और प्यार जैसे  शब्द,महज़  किताबो तक सिमट जायेंगे
आगे बढ़ने की लालच में हम अपनों की ही  बलि चढ़ाएंगे। 
आने वाले समय में प्यार परिवार मित्र सारे शब्द ,
बेमतलब  और  तर्कहीन  रह जायेंगे। 

भीड़ में अपनी  पहचान के चेहरे भी हज़ार  होंगे 
पर क्या होगा जब अपने पहचान के ही  चेहरे हमसे ही अनजान होंगे। 

खुद भी होंगे ,ईश्वर भी होंगे, लेकिन ये महज़ नाम होंगे
खुद को खुदा माने ईश्वर बन बैठे इंसान होंगे। 

राहते  और भी होंगी वस्ल की राहतों के सिवा 
वक़्त और इंसान से बढे उनके हालत होंगे। 

संघर्ष  आज भी है। संघर्ष कल  भी रहंगे ,सदा  हमेशा वही हालत होंगे।
मनुष्य तो होंगे पर मुर्दा उनमे  जज़्बात होंगे।

आने वाले समय में ,हमारी सारी मौज मस्ती जंजीरो की लांबई तक ही सिमट जायगे ,
ज़िन्दगी जीनी  भी हमें महज़ रस्म अदायगी नज़र आएगी। 

डरता नहीं हूँ मैं आने वाले अँध्यारे से ,वक़्त तो आता- जाता हैं 
बस ,इल्म इस बात है है की ,आने वाले वक़्त में 
मूल्यों ,जज़्बातों और भावनाओं से परे 
मनुष्य रूपी  हर तरफ कंकाल होंगे। 

                                                               विशाल रंजन 

 

      

No comments:

Post a Comment

What college can’t teach me school did

The story goes back to the time when I was in class 6, and for the first time an expert choreographer came to our school for preparing...