Thursday, March 5, 2015

चूहे की माँ




  
बात कुछ उन दिनों  की है ।दिवाली  आने वाली थी आस  पड़ोस में सभी अपने अपने घरो की  सफाई कर रहे थे।   मैं  बहुत आलसी और कामचोर  किस्म  का था।  मैं  हमेशा  माँ से  कहा की  " आप  मुझ से प्यार नहीं  करती हैं  जब  देखो काम -काम  करते रहती हैं।   बाकियों के घर देखो इतनी सुबह कौन  काम  रहा  है।  यह बात अलग है  सभी अपनी घरो की सफाई कर रहे थे। मेरे  घर में पर्चा बना की कौन क्या काम करेगा। मैं घबरा गया  कंही मुझे मुस्किल कमरे की सफाई का काम न मिले। मैं घबरा गया। सब ने अपने पर्चियां उठायें और अब   मेरी  बारी  थी। मैंने  डर  आभास में पर्चा उठाया और पर्चे में मिला "पूजा घर " मैं मन ही  मन खुश हो गया क्यूंकि माँ पूजा घर की सफाई रोज करती थी। मेरे  घर  का मंदिर थोड़ी उच्ची झगह पर था। इसलिए उसके ऊपर की सफाई नहीं हो पाती थी। मैंने सोचा सिर्फ  छत की सफाई  कर देता हूँ और फिर जा के सबको परेशान करूंगा।
मैं  झाड़ू और सफाई  यंत्र लेकर चढ़ गया  पर जैसे ही मैं  ऊपर पंहुचा   मैंने एक चुहिया\ और  उसके  छोटे -छोटे बच्चों  के देखा। मैं डरपोक  झट से नीचे उतर  गया  और डंडे  से  मंदिर पर मरने लगा। मैं मंदिर पर मार  रहा था ताकि चूहियँ भाग जाय और में उसके बच्चों को फेक अपना कार्य  करूँ। मुझे  लगा की मेरे मारने से चुहिया भाग जाएगी और  में डंडे को जोर जोर  से मरने लगा। डंडे की आवाज़ सुन मेरी माँ आ गयी। मेरी माँ  कहा यह क्या शोर  रहे हो। मैंने कहा " माँ कुछ नहीं एक चुहैया और उसके बच्चे हैं मंदिर की छत पर मैं उन्हें भगा  रहा हूँ। माँ ने कहा देखो अब तक भाग गयी  होगी। मैं फिर ऊपर  चढ़ा और जो  देखा  मुझे  आज तक स्मरण  है वह  चुहैया अपने सरीर से अपने बच्चों को छुपाकर बैठी थी और मुझे देख रहे थी। चहिये का वह रूप मुझे पर गहरा असर कर गया। उसका  वह रूप  मुझे  ममत्व का स्मरण करा गया। माँ नारी रूप में हो या प्राणी रूप  में  उसके ममत्व  का प्रभाव  सदा एक ही  रहता  है। मैं नीचे  आ गया और सारी बातें माँ को यथार्त बता दी। मेरी माँ ने कहा की "बेटा  ,माँ हर प्राणी रूप  में अपने कर्त्वय  का निर्वाह करती  है। वह अपने मातृ धर्म को पहचानती है चाहे  वह  चींटी हो ,या चिडया हो ,माँ अपने बच्चों  की सुरक्षा और  भविषय के लिए  त्याग और बलिदान को  तत्पर रहती  है।  मेरे माँ के  इस विचार ने ममत्व  के प्रति मुझे  अति  संवदेनशील बना दिया। मैंने उसी  छड़ माँ से आग्रह किया की चूहो को वंही रहने दिया जाए। माँ ने कहा तुम ना  भी कहते तो मैं उन्हें नहीं हटाती। माँ के इन शब्दों ने मुझ पर आज  तक  गहरा  प्रभाव डाला है ।  धन्य है वह माँ जिनके  लायक बच्चे है और धन्य है वह बच्चे जिन्हे माँ  का प्यार  नसीब है… 
ओम मातृ नमामि।

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