आधी रोटी खाकर, अपने बच्चों को सुलाकर
खुद भूखी सोती माँ ,
दूसरों की बात पर अपने बच्चे मारकर ,
खुद कोने में छिपकर रोती हैं माँ ,
सर्द भरी सुबह में सुबह उठ मेरा नास्ता बनती है माँ , मेरी माँ
प्यारी है , दुलारी दुलारी है ,मेरा मान, मेरा अभिमान है माँ
परिवार की आत्मसम्मान है मेरी माँ,
अपने अस्त्तिव को भूलकर ,
अपने आज में आज में समाकर , आगे बढ़ने की
प्रेरणा दे रही है माँ, मेरी माँ
कवि -विशाल रंजन