राष्ट्र वंदना आखिर मज़हबी कैसे हो गया
क्या वैसे ही जैसे गाय हिन्दू की और
सुअर मुसलमानों का हो गया
माना वंदे मातरम अब अन इस्लामिक हो गया
लेकिन मियां क्या मजहब अब वतन से भी ऊंचा हो गया
कैसे देशभक्ति में तुम मजहब ला देते हो
राम भी एक है रहीम भी , फिर भी क्यों
तुम हर वक़्त इनको लड़वाते हो
लहू का रंग है एक,
बहा एक खून आज़ादी पाने को
लहू को मजहब का रंग दे
क्यों तुम हमारी एकता को ललकारते हो
हो तुम एक या दो
फिर भी पूरी कॉम का शर झुकते हो
है राष्ट्र वंदना ये ,एक लहू के बोल
क्यों न संग खड़े तुम भी
इसे गर्व से गाते हो .
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