Saturday, July 29, 2017

लहू का रंग है एक

राष्ट्र वंदना  आखिर मज़हबी कैसे हो गया
क्या वैसे ही जैसे गाय हिन्दू की और
सुअर मुसलमानों का हो गया

माना वंदे मातरम  अब अन इस्लामिक हो गया
लेकिन मियां क्या मजहब अब वतन से भी ऊंचा हो गया

कैसे देशभक्ति में तुम मजहब ला देते हो
राम भी एक है रहीम भी  , फिर भी क्यों
तुम हर वक़्त इनको लड़वाते हो

लहू का रंग है एक,
बहा एक खून आज़ादी पाने को
लहू को मजहब का रंग दे
क्यों तुम  हमारी एकता को ललकारते हो

हो तुम एक या दो
  फिर भी पूरी कॉम का शर झुकते हो
है राष्ट्र वंदना ये ,एक लहू के बोल
क्यों न संग खड़े तुम भी
इसे गर्व से गाते हो .

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