Wednesday, May 20, 2015

ज़िद है इसलिए आज फिर खड़ा हूँ





धरती  की  इस तपन  को , नंगे  पैर मै  सहा  हूँ 
 बहरूपिये   इस दुनिया में ,अपनी   परछाइ ढुढँन मै चला हूँ ,
 डगमगाते  इन  कदमो  से कई  बार  गिरा  हूँ ,
 ज़िद है मुझे  चलने की  ,बस इसलिए उठ मै  फिर खड़ा हूँ .. 

अनजाने  चेहरों  में  खुद  को  ढुढँन  मै  चला  हूँ। 
 लाखों  की  भीड़ में अपने  सपनो  का , आसमां  लिए  कई बार  गिरा हूँ। 
जिद  है  कुछ  पाने  की  इसलिए  आज  मै  फिर खड़ा  हूँ 

वक़्त  बेवक़्त  हालत से,  अनचाहे  बकवास  से 
हरवक्त  लड़ा  हूँ ,गिरा  हूँ ,संभला हूँ ,फिर गिरा हूँ 
ज़िद  है  कुछ बदलने की ,बस उसी कोशिश  मै  आज  फिर खड़ा  हूँ। 

शोर बहुत मचाया है ,आवाज़े  भी बहुत  उठायी   है ,
 लोगो से ,समजो से ,अपने हालातों से कई  बार लड़ा हूँ 
बस ज़िद है खुद को साबित करने की बस ,उसी  कोशिस  में  आज फिर खड़ा हूँ। 

चलते -चलते  इन  रास्तों  पे  कई  बार  गिरा  हूँ। 
मिलेगी मंज़िल  इसी  विश्वास पे इस  राह को मै  चला  हूँ।

ज़िद  है मुझे कुछ हासिल करने की ,आज अपने ज़िद के लिए
 मै  फिर  उठा  हूँ ,ज़िद  है तो ही मै आज  फिर  खड़ा  हूं। 

                                                                                               विशाल  रंजन


Tuesday, May 5, 2015

हम से अच्छे परिंदे ही हैं

हम   से अच्छे परिंदे  ही  हैं। 
भीड़  में  कम  से कम  आज़ाद  तो उड़ते है। 

खामोशी  का एहसास  उन्हें  हर पल  रहता  हैं 
भीड़  की शोर  से ,लोगो  की चोच  से  आज़ाद तो रहते हैं। 

अपनी  सुनने  को करने को आज़ाद  तो रहते हैं। 
समझने  और समझाने  से  आज़ाद  तो  रहते है.

अपने  ख़्वाबों  का  आसमान लिए  उड़ते हैं। 
कौन अपना  कौन पराया  वो  थोड़ी  ही सोचते  हैं। 
सब  लिए  संग, हवा  से बाते कर  बेफिक्र उड़ते   हैं। 

अपने हौसलों की उड़न परिन्दे ही  उड़ते हैं
हम सब तो भीड़  मैं कीड़ों के तरह रेंगते हैं। 

सरहदों का  डर  हमें   हर पल  रहता है। 
परिन्दों को सरहदों  का कोई डर  थोड़ी ही होता  है . 

उनके  पंख  ही उनके सपने हैं , हौसले ही   उनकी उड़ान। 
इसलिए  मुझे  परिन्दे  ही  अच्छे लगते है।






What college can’t teach me school did

The story goes back to the time when I was in class 6, and for the first time an expert choreographer came to our school for preparing...